विक्रम खन्ना की एक अनजान हसीना निशा सिंह से इत्तिफाकन मुलाकत....बातचीत....बेतकललुफी.... आपसी समझ फिर निशा की बड़ी ही आकर्षक ऑफर... साठ लाख आसानी से हासिल करने की.....वो रकम एक बहुत बड़े पुराने हवेलीनुमा मकान में थी...रकम बैंक से गबन की गई थी और गबनकर्ता मैंनेजर लापता था, शायद मारा जा चुका था। लेकिन रकम उसी मकान में थी और उसकी पत्नि की जानकारी में थी मगर पत्नि वहाँ नहीं थी। मकान खाली था....बस रकम को मकान में ढूंढकर वहाँ से चुराना था... बेहद जरूरतमंद विक्रम ने मजबूरन ऑफर कबूल कर ली....।
योजना बनी। अमल शुरू हुआ ।
निशा रात के अंधेरे में विक्रम को मकान तक पहुंचाकर लौट गई... अंधेरे में डूबे मकान में सन्नाटा था...विक्रम बेसमेंट की खिड़की से सेंध लगाकर अंदर घुसा...सीढ़ियों द्वारा ऊपर पहुँचते ही तेज झटका सा खाकर रह गया- मकान खाली नहीं था। मोमबत्ती की मरियल रोशनी.... रिकार्ड प्लेयर से उभरता बहुत ही धीमा संगीत... शराब के नशे में धुत्त नजर आती बेहद खूबसूरत जवान औरत.....। तो क्या निशा ने झूठ बोला था। चालाकी की थी। विक्रम सोच ही रहा था की दबे पाँव एक और आदमी आ पहुँचा। हाथ मेन रिवाल्वर लिए वह सीधा औरत की ओर बढ़ रहा था....।
यह थी साठ लाख का चक्कर की रहस्यपूर्ण खतरनाक शुरुआत