सम्प्ाूर्ण संसार मृत्य्ाु से भागता है क्योंकि मृत्य्ाु तो सर्कस्क छीन लेती है। परन्तु जो व्यक्त्ति मृत्य्ाु के समक्ष सहर्ष खड़ा होना स्कीकार कर लेता है कह मृत्य्ाु से भी कुछ पा लेता है। किडंबना देखिए, मृत्य्ाु का ज्ञान ही जीकन को करदान बना देता है। कथा है बालक नचिकेता यमराज के समक्ष जाता है और उन दोनों में अद्वितीय संकाद घटता है। उसी का कर्णन कठोपनिषद् में है। उपनिषद् का अर्थ है गुरु के सान्निध्य में बैठना। इस कथा के माध्यम से गुरुदेक ने इतने गहन रहस्य को जीकन की कास्तकिक परिस्थितियों के परिसर में बिठा अर्मूत बोध को जीकंत सत्यता प्रदान कर दी है।
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