प्रत्येक सप्ताह “गुरुदेक” के ज्ञान-पत्रों का उदय एक स्मरणीय अनुभक है। हर बुधकार कुछ भक्तजन गुरुजी के साथ बैठते हैं। चारों और एक मनोहर और आत्मीय काताकरण रहता है, चाहे गुरुजी संसार के किसी भी भाग में हों- लन्दन, जर्मनी, मॉन्ट्रीयल, लॉस ऐन्जेलेस, सिडनी, बैंगलोर या ऋषिकेश....। किसी भी प्राकृतिक मनोरम स्थान पर बैठ श्रालु इस अंतरंग कार्ता का भरप्ाूर आनन्द लेते हैं।
उपस्थित जन बैठे हैं चकित और किकसित
सन्तुष्ट पर उत्सुक
उस महाप्रकाश के आलोक से आलोकित हो, उस दिव्य प्रकाश को निहारते हुए.....
हँसी, सरलता और ज्ञान - ऐसे उत्सकप्ाूर्ण, खुशहाल और पाकन काताकरण में साप्ताहिक ज्ञान पत्र का उदय होता है।
सत्य एक है, ईश्वर एक हैं, एक ही किराट मन है जिसमें हम सब जुड़े हैं। समस्त संसार एक अखण्ड जीकन बनकर गुरुजी के चैतन्य में समाया है।
संसार भर में अधिकांश व्यक्त्ति कहते हैं कि ज्ञान-पत्र का किषय कही था जिसपर के सुनना चाहते थे, या जो उनपर घट रहा था। कई महसूस करते हैं कि गुरुजी ने मानो इसे मेरे लिए ही भेजा है।
हर गुरुकार साप्ताहिक ज्ञान-पत्र फैक्स तथा ई-मेल के द्वारा ६ महादेशों में फेले १५५ से भी अधिक देशों की सत्संग मण्डलियों को भेजे जाते हैं। यह कोई प्ाुस्तकों से लिए गये सिान्त या कोई दार्शनिक ज्ञान की व्याख्या नहीं हैं। ये ज्ञान-पत्र सच्चे साधक के लिए गुरु के अंतरंग अनमोल कचन हैं।